ज़िन्दगी की इस कश्ती में,
इस कदर उलझे है हम।
ना दोस्त को समझ पाए,
ना उसके प्यार को।।
समझा तो हमने तब,
समझा तो हमने तब उसे,
जब छोड़ गया किसी किनारे हमें,
कई सवाल मन में लिये।
दो लफ्ज़ कहे उसने,
“रास्ते ही अलग है हमारे, फिर कश्ती क्यों एक है?”
ज़िन्दगी की इस कश्ती में,
इस कदर उलझे है हम।
ना दोस्त को समझ पाए,
और शायद नाही उसकी दोस्ती को ।।
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वाह।। बहुत सुंदर लिखा है।👌👌
धयनवाद 🙏🙃